गीता अध्याय

01-11  दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन।
12-19  दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन
20-27  अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग
28-47  मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन


01-10  अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद
11-30  सांख्ययोग का विषय
31-38  क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण
39-53  कर्मयोग का विषय
54-72  स्थिर बुद्धि पुरुष के लक्षण और उसकी महिमा


01-08  ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण
09-16  यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता का निरूपण
17-24  ज्ञानवान और भगवान के लिए भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता
25-35  अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने के लिए प्रेरणा
36-43  काम के निरोध का विषय



01-18  सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय
19-23   योगी महात्मा पुरुषों के आचरण और उनकी महिमा
24-32   फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन
33-42   ज्ञान की महिमा




01-06  सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय
07-12   सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा
13-26   ज्ञानयोग का विषय
27-29   भक्ति सहित ध्यानयोग का वर्णन



01-04  कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण
05-10   आत्म-उद्धार के लिए प्रेरणा और भगवत्प्राप्त पुरुष के लक्षण
11-32   विस्तार से ध्यान योग का विषय
33-36   मन के निग्रह का विषय
37-47   योगभ्रष्ट पुरुष की गति का विषय और ध्यानयोगी की महिमा



01-07  विज्ञान सहित ज्ञान का विषय
08-12   संपूर्ण पदार्थों में कारण रूप से भगवान की व्यापकता का कथन
13-19   आसुरी स्वभाव वालों की निंदा और भगवद्भक्तों की प्रशंसा
20-23   अन्य देवताओं की उपासना का विषय
24-30   भगवान के प्रभाव और स्वरूप को न जानने वालों की निंदा और जानने वालों की महिमा



01-07  ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर
08-22   भक्ति योग का विषय
23-28   शुक्ल और कृष्ण मार्ग का विषय



01-06  प्रभावसहित ज्ञान का विषय
07-10   जगत की उत्पत्ति का विषय
11-15   भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और देवी प्रकृति वालों के भगवद् भजन का प्रकार
16-19   सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन
20-25   सकाम और निष्काम उपासना का फल
26-34   निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा




विभूतियोग- नामक दसवाँ अध्याय

01-07  भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल
08-11  फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन
12-18  अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के लिए प्रार्थना
19-42  भगवान द्वारा अपनी विभूतियों और योगशक्ति का कथन


01-04  विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना
05-08  भगवान द्वारा अपने विश्व रूप का वर्णन
09-14  संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन
15-31  अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना
32-34  भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिए उत्साहित करना
35-46  भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना
47-50  भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज और सौम्य रूप का दिखाया जाना
51-55  बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित अनन्य भक्ति का कथन।


01-12  साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय
13-20  भगवत्‌-प्राप्त पुरुषों के लक्षण
 

01-18  ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय
19-34  ज्ञानसहित प्रकृति-पुरुष का विषय


01-04  ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत्‌ की उत्पत्ति
05-18  सत्‌, रज, तम- तीनों गुणों का विषय
19-27  भगवत्प्राप्ति का उपाय और गुणातीत पुरुष के लक्षण


01-06  संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय
07-11  जीवात्मा का विषय
12-15  प्रभाव सहित परमेश्वर के स्वरूप का विषय
16-20  क्षर, अक्षर, पुरुषोत्तम का विषय


01-05  फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन
06-20  आसुरी संपदा वालों के लक्षण और उनकी अधोगति का कथन
21-24  शास्त्रविपरीत आचरणों को त्यागने और शास्त्रानुकूल आचरणों के लिए प्रेरणा


01-06  श्रद्धा और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय
07-22  आहार, यज्ञ, तप और दान के पृथक-पृथक भेद
23-28  ॐतत्सत्‌ के प्रयोग की व्याख्या


01-12  त्याग का विषय
13-18  कर्मों के होने में सांख्यसिद्धांत का कथन
19-40  तीनों गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म, कर्ता, बुद्धि, धृति और सुख के पृथक-पृथक भेद
41-48  फल सहित वर्ण धर्म का विषय
49-55  ज्ञाननिष्ठा का विषय
56-66  भक्ति सहित कर्मयोग का विषय
67-78  श्री गीताजी का माहात्म्य